21 December 2013

अनकही


भाषा में गलतियों के लिए क्षमा कर दीजीये । 


माँ डाट रही थी, कुछ केह रही थी, कुछ पूछ रही थी,

लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था, सुनाई दे रहा था, शोर था, 

लेकिन ना जाने क्यों ख़याल कहीं और थे, कहीं दूर,

वह फिर ज़ोर से चिल्लाई, लगा की अभ हमे कुछ कहना चहिए, कुछ भी

पर क्या केह्ते? परेशान होके वह चली गयी,

और हम अकेले सोचते रह गए। 



अगले दिन विद्यालय मे अध्यापक ने पूछा की किताब कहाँ है,

किताब घर पे थी और हम ने कहा की किताब घर पे है,

उन्होंने पूछा किताब घर पे क्याँ कर रही है,

अपनी मासूमियत मे हम ने कहा की हम किताब भूल गए, 

उन्होंने लकड़ी का फटा निकाला और ज़ोर से हाथ पर मारा,

हम सेहम गए, डर गए, हाथ लाल हो गया था – किताब ही तो भूले थे। 



गणित के कुछ प्रशन कर रहे थे ट्यूशन मे,

नंबर आ रहे थे उल्टे सीधे, बड़े छोटे, लंबे चौड़े,

दोस्त कहता है –“अरे यह क्या उल्टा लिख रहा है”

हम ने उसकी कॉपी देखी और फिर बोले “अरे सही तो लिखा है”

उसके बाद ध्यान नहीं दिया, क्योंकि दिमाग़ मे तो एक दो टीन 

चार पाँच छह सात आठ नौ दस ग्यारह बारह तेरह चल रहा था। 



फिर नाजाने एक दिन सिनेमा हॉल से आने के बाद माँ हमारे कमरे मे आई,

और ज़ोर से हमे गले से लगा लिया, शायद रो रही थी वह, मायूस थी वह;

कहा की उन्हे माफ कर दे; हमे कुछ समझ नहीं आ रहा था; क्या हो रहा था यह;

सालो बाद पता चला उस दिन निकली थी आमिर जी की पिक्चर;

और उन्हे पता चला था की हम हैं एक तारा ज़मीन पर। 



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गाना :  सानू एक पल चैन -- नुसरत फ़तेह अली ख़ान


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